उत्तर प्रदेश में विधानसभा और विधान परिषद का चुनाव संपन्न होने के बाद अब सुर्खियों में राज्यसभा चुनाव है। सबकी निगाहें अब राज्यसभा चुनाव पर टिकी है। उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए कुल 31 सीटें आती है,जिनमें से 11 सीटों पर चुनाव होने वाले हैं। विधानसभा में बीजेपी संख्या बल में सबसे आगे हैं यही कारण है कि ज्यादातर सीटों पर बीजेपी का ही कब्जा होगा। जिन 11 सीटों पर चुनाव होने वाले हैं उन सीटों पर वर्तमान में भाजपा के 5, सपा के 3, बहुजन समाजवादी पार्टी के 2, और कांग्रेस के 1 सदस्य है। उनका कार्यकाल 4 जुलाई को समाप्त हो रहा है। आज से नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है। 31 मई तक नामांकन दाखिल किए जा सकेंगे। 1 जून को नामांकन पत्रों की जांच की जाएगी। 3 जून तक नाम वापस लिए जा सकेंगे। 10 जून को मतगणना होगी आज शाम 5:00 बजे नतीजे आएंगे। मतदान सुबह 9:00 बजे से लेकर शाम 4:00 बजे तक होगा ।इन सभी अपडेट्स के बीच में खबर सामने आ रही है कि कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल को समाजवादी पार्टी राज्यसभा भेज सकती है।
इस फार्मूलें के आधार पर होता है राज्यसभा का चुनाव
यूपी में विधानसभा की कुल 403 सीटें हैं, विधान परिषद की 100 और राज्यसभा के 31 सीटें है। इन 31 सीटों में 11 सीटें खाली हो रही है। राज्यसभा सदस्यों का निर्वाचन विधानसभा के सदस्यों के द्वारा होता है। राज्यसभा का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से होता है। राज्यसभा चुनाव के लिए फार्मूला है कि (कुल खाली सीटों की संख्या+1)।इसके योग से विधानसभा के कुल सीटों की संख्या को भाग देना होगा। और उसके बाद जो योग है उसमें एक जोड़ दिया जाता है। उसके बाद जो संख्या निकल कर आती है उतने विधायकों की संख्या एक राज्यसभा सीट के लिए चाहिए होती है। चलिए उत्तर प्रदेश के उदाहरण से समझते हैं उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की कुल 11 सीटें खाली होने वाली है अभी 11 में 1 जोड़ने पर कुल संख्या आएगी 12(11+1=12) ।उत्तर प्रदेश में कुल विधानसभा सीटों की संख्या है 403 अब 403 को 12 से विभाजित करने पर संख्या आएगी 33.58।अब इसमें एक जोड़ देते हैं अब कुल संख्या हो जाएगी 34.58 यानी कि उत्तर प्रदेश में 1 राज्य सभा सीट के लिए 35 विधायकों की आवश्यकता पड़ेगी।
UP के लिहाज से राज्यसभा चुनाव का गुड़ा गणित.
उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की एक सीट के लिए से 35 विधायकों की आवश्यकता है।संख्या बल के हिसाब से यह तो तय है कि बीजेपी कोटे से 7और समाजवादी पार्टी कोटे से 3 व्यक्ति राज्यसभा जा सकते हैं। लड़ाई कुल मिलाकर 11वीं सीट के लिए होगी। विधानसभा में भाजपा गठबंधन के पास 273 तो वहीं सपा गठबंधन के पास कुल 125 विधायक है। राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के पास 2 कांग्रेस पार्टी के पास 2 और बसपा के पास 1 विधायक है। विधानसभा चुनाव के दौरान ही राजा भैया और अखिलेश यादव के बीच तल्खी देखने को मिली थी जिसके बाद यह साफ हो गया था कि राजा भैया अखिलेश यादव का साथ नहीं देगे।11वीं सीट के लिए राजा भैया अपने 2 सीटों का समर्थन भारतीय जनता पार्टी को दे सकते हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी अपने एक विधायक का समर्थन सपा को दे सकते हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बहुजन समाजवादी पार्टी किसी को समर्थन नहीं देगी।
सिब्बल जाएंगे राज्यसभा आजम की नाराजगी होगी दूर!
उत्तर प्रदेश में इस समय समाजवादी पार्टी बुरे दौर से गुजर रही है। एक के बाद एक बड़े दिग्गज या तो पार्टी से नाराज चल रहे हैं या फिर पार्टी का साथ छोड़ दे रहे हैं।आजम खान,शिवपाल यादव दो बड़े चेहरे इस समय पार्टी से नाराज चल रहे हैं। आजम खान समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं। रामपुर से 9वीं बार विधायक चुने गए है। रामपुर से लोकसभा के भी सदस्य रह चुके हैं। मुलायम सिंह यादव के करीबी हैं। मुसलमानों के बीच आजम खान की अच्छी पकड़ है। इस बार के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मुसलमानों का वोट यादवों से भी ज्यादा मिला। अब ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी पर मुस्लिम नेताओं के अनदेखी का आरोप लगता है तो समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है। 27 महीने जेल में रहने के बाद आजम खान अंतरिम जमानत पर बाहर आ गए हैं। उनके तेवर मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव को लेकर सख्त है। लिहाजा उन्हें खुश करने के लिए आजम खान के वकील कपिल सिब्बल को सपा के कोटे से राज्यसभा मुलायम सिंह यादव भेज सकते हैं। माना जा रहा है कि कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजने के बाद आजम खान के नाराजगी दूर हो जाएगी और वह पुनः समाजवादी पार्टी के लिए तन मन धन से लग जाएंगे।
आजम को जेल से बाहर लाने में सिब्बल की है बड़ी भूमिका
आजम का पिछले 27 महीनों तक सीतापुर जेल में बंद थे। उनके ऊपर कुल 88 मुकदमे चल रहे थे। अंत में एक और मुकदमा लग गया था जिसके कारण आजम खान ईद पर घर वापस नहीं आ सके। लेकिन अब आजम खान को अंतरिम जमानत मिल गई है और वह घर लौट चुके हैं। आजम खान को जेल से लेकर घर तक लाने में कपिल सिब्बल की बड़ी भूमिका है। कपिल सिब्बल कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के साथ-साथ जाने-माने सुप्रीम कोर्ट के वकील भी हैं। आजम खान को जमानत देते समय सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी भी कीया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि 87 में से 86 मामलों में आजम खान को जमानत मिल चुकी है। सिर्फ एक मामले के लिए इतना लंबा वक्त क्यों लग रहा है। हाईकोर्ट को फटकार लगाते हुए कहा कि मामले में 137 दिनों बाद भी फैसला क्यों नहीं हो पाया।सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इलाहाबाद हाई कोर्ट इस मामले में फैसला नहीं देगा तो हम इसमें दखल देंगे। आजम खान के वकील कपिल सिब्बल ने भी यूपी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि यूपी सरकार उनके मुवक्किल को राजनीतिक द्वेष का शिकार बना रही है।आजम खान दो साल से जेल में हैं, उन्हें अब जमानत दे दी जानी चाहिए।
2009 में सपा से निकाले गए थे आजम खान
आजम खान समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी भी हैं। एक दौर वह भी था जब आजम खान को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था साल था 2009 का लोकसभा के चुनाव होने वाले थे उसी समय आजम खान को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया था। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह सब अमर सिंह के इशारे पर हुआ था आजम का उस वक्त चुनाव नहीं लड़े रामपुर लोकसभा सीट से जयप्रदा को मैदान में उतारा गया।माना जाता है कि उस वक्त आजम खान ने खूब प्रयास किया था कि जयाप्रदा चुनाव हार जाए परंतु ऐसा हुआ नहीं ।उसके बाद से ही लोगों के मन में यह धारणा बन गई कि मुसलमान मुलायम सिंह यादव का साथ नहीं छोड़ेंगे कितना भी बड़ा मुस्लिम चेहरा नाराज ही क्यों ना हो।2009 के लोकसभा चुनाव में जो सबसे खास बात रही वह यह कि कांग्रेस पार्टी की सीट ज्यादा निकली थी उम्मीद से ज्यादा. जानकार मानते हैं कि आजम खान के नाराजगी की वजह से हुआ हालांकि यह नाराजगी ज्यादा दिन तक नहीं चली पुनः 2010 में आज हम सपा में वापस आ गए ।
हां 27 महीने जेल में गुजारने के बाद आजम खान वापस आए हैं आज भी आजम अखिलेश मुलायम से नाराज हैं लेकिन उनके लफ्जों से नाराज ही कम लाचारी ज्यादा पता चलती है क्योंकि आज आजम के पास रास्ता कोई दूसरा नहीं है आखिर आजम जाएंगे तो जाएं कहां।