
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति हमेशा से ही एक मुद्दा रहा है, किसी भी चुनाव में पार्टियां जातीय समीकरण बनाती है। और उन्हें इसका फायदा भी मिलता है, क्यूंकि उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाता है। उत्तर प्रदेश में 2022 का विधानसभा चुनाव होने जा रहा ऐसे में तमाम पार्टियां जनता को लुभाने में लगी है। कहा जा रहा है कि 2017 में पार्टी की ऐतिहासिक जीत के पीछे यूपी का जातीय समीकरण था। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में सभी जातियों का साथ मिला था, पार्टी सहयोगी दलों के साथ मिलकर 325 सीटें जीती थी। कहा जाता है कि बीजेपी की इस बड़ी जीत में गैर यादव OBC का बड़ा हाथ था। यूपी में OBC करीब 40% हैं और यह यूपी की सियासत में खासा महत्व रखते हैं।
दलित वर्ग भी कुल आबादी का करीब 23% है। इस लिहाज से सियासत में काफी मायने रखता है। इसके बाद नंबर आता है 20% अगड़ी जातियों का। इसमें सबसे ज्यादा 11% ब्राह्मण, 6% ठाकुर और 3% कायस्थ और वैश्य हैं। माना जाता है कि यादव को छोड़कर पिछड़ी जाति का बड़ा वोट बीजेपी को मिला था। साथ ही जाटव को छोड़ बड़ी संख्या में दलितों ने भी बीजेपी को वोट किया था। लेकिन जिन छोटे दलों के साथ लेकर बीजेपी इन वोट बैंक को अपने पाले में लाई थी वह अब पार्टी से या तो दूर हैं या फिर नाराज।
मायावती ने शुरू किया ब्राह्मण सम्मेलन।
बता दें कि यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी प्रमुख पार्टियां ब्राह्मण समाज को जोड़ने के लिए प्रयासरत हैं। इसी मकसद से बसपा ने भी सम्मेलन शुरू किया था। हाल में ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने ब्राह्मण सम्मेलन का शुरुवात किया। मायावती के करीबी माने जाने वाले सतीश चन्द्र मिश्रा ने सम्मेलन की शुरुवात 23 जुलाई को अयोध्या से दर्शन करने के बाद उत्तर प्रदेश के अलग अलग धार्मिक स्थल से शुरू कर दिया है उनका कहना है की अगर 13 प्रतिशत ब्राह्मण और 23 प्रतिशत दलित मिल जाए तो बसपा को सरकार बनाने से कोई नही रोक सकता।
अखिलेश ने भी किया ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत।
राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी पार्टी के अपने पांच बड़े ब्राह्मण नेताओं से मुलाकात की और ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुवात करने की बात कही समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण नेताओं ने अखिलेश यादव को भगवान परशुराम की प्रतिमा भेट करके यूपी के बलिया जिले से शुरू करने की बात कही थी।
अगर बात भाजपा सरकार की तो 2017 में भाजपा बड़ी संख्या में जीत दर्ज की थी उस समय भी विपक्षी पार्टियों का जातीय समीकरण था लेकिन इसके बावजूद बीजेपी को हर धर्म और जाति के लोगो ने वोट किया था और थी वजह था की उस चुनाव में ना तो ब्राह्मण ना पिछड़ा कोई भी कार्ड नहीं चला। बसपा दलितों की पार्टी बताती है लेकिन यहां वोट दलित और ब्राह्मण देख के नही हुआ था बल्कि बीजेपी को हर एक का समर्थन मिला। और बसपा और अन्य पार्टियों को करारी हार मिली सपा और बसपा ये दोनो पार्टियां शुरू से ही लोगो को दलित और ब्राह्मण में बाटती आ रही है लेकिन इन सब का फायदा बीजेपी ने उठा लिया उसने अपना एजेंडा चलाया और सबको साथ लेके चलने की बात कही और उसकी का फल था 2017 का चुनाव।
क्या किसान आंदोलन से पड़ेगा फर्क।
देश में किसान आंदोलन जारी है ऐसे में किसानों को तमाम पार्टियां अपने वोट के खातिर मोहरा बना रही। वही खुद को किसानों का नेता बता रहे राकेश टिकैत भी किसानों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने में लगे है। टिकैत खुद को किसानों का नेता बताते है और मंच से बोलते है सरकार गिराने की वही बीते दिनों टिकैत ने कहा हम लखनऊ को भी दिल्ली बना देते मतलब साफ है की टिकैत अपने फायदे के लिए विधानसभा चुनाव में किसानों का फायदा उठाने वाले है। टिकैत कहते है उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के मूल्य का भुगतान नहीं हुआ है लेकिन अगर साफ तौर पर देखे तो उत्तर प्रदेश में 55 हजार गन्ना किसानों के मूल्य का भुगतान सूबे की सरकार ने सीधे उनके खाते में किया है। टिकैत की मंशा किसानों के आड़ में राजनीति करना है वो बीजेपी के खिलाफ किसानों को खड़ा करके खुद की राजनैतिक रोटी सेंकने पर तुले हुए है।
दलितों का कहना बीजेपी सरकार बेहतर।
यूपी में कुल 23 प्रतिशत दलित है, और दलितों का कहना है बीजेपी सरकार हमारे लिए बेहतर है। “द राजधर्म” की टीम विधानसभा चुनाव के कवरेज के लिए काशी के एक दलित गांव में जाती है और वहां के लोगो से बात करने पर पता चलता है की इसके पहले की सरकारों में उनके पास रहने के लिए छत और खाने के लिए अन्न नही था। एक महिला से बात करने पर पता चलता है की पहले सरे आम उन पर यादव जाति के लोगो के द्वारा अत्याचार होता था और उसकी थाने में रिपोर्ट तक नहीं लिखी जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। मोदी सरकार आते है हमे रहने के लिए पक्का मकान और हर महीने राशन मिलता है। और सबसे बड़ी बात अब कोई भी निचली जात का समझ के हमारे ऊपर अत्याचार भी नही करता। और गांव में कुछ भी मामला हो जाने पर थाने पर आसानी से हमारी रिपोर्ट भी लिखी जाती है, और पुलिस प्रशासन का पूरी तरह से सहयोग भी मिलता है।